Wednesday, 5 March 2008

यहाँ मुक्ति की प्रबल चाह

यहाँ मुक्ति की प्रबल चाह है उसी एक दुर्दान्त शक्ति की-
हमें न कोई पनाह अथवा शरण चाहिए, अन्ध-भक्ति की !
यहाँ सरल अन्तर दो परस्परातुर, और चाहिए भी क्या ?
हमें न किंचिन्मात्र ज़रूरत किसी तर्क की, किसी युक्ति की !

प्रभाकर माचवे

No comments: